समरसता भाव व्याख्या

संगठन गीत - समरसता सेवा संगठन

दोहा :-

शब्द सुमन अर्पण करूँ, हिय में करके ध्यान |

माँ शारद दे जाइए, समरसता का ज्ञान ||

समरसता के भाव में, रहते जो इंसान |

मनमें बढ़ती प्रेरणा, करने जग कल्याण ||

विप्र, धेनु, चांडाल, गज, अचर, सचर अरु श्वान |

उनकी दृष्टी में सभी, दिखते एक समान ||

शत्रु, मित्र की भावना, त्याग करे सब कर्म |

द्वेष, ईर्षा से रहित, हुआ करे सत्कर्म ||

वही जगत में श्रेष्ठ है, कहें कृष्ण सुन पार्थ |

समरसता का भाव तो, रहता है निःस्वार्थ ||

छंद :-

छोटा बड़ा न कोई जग में, कर्म ही श्रेष्ठ बनाता है |

हर प्राणी से प्रेम बढ़ाले, समरस मन हो जाता है ||

कर कर्तव्य कर्म बढ़ता चल, अपनी मंजिल पाने को |

नियत कर्म पूजा है तेरी, भव दुख पार कराने को ||

पर हित सरिस धर्म नहिं दूजा, अगर समझ तू जाएगा |

मानव की सेवा करने में, तेरा मन रम जाएगा ||

त्रेता युग में श्रीराम ने, जग को यही सिखाया है |

तुच्छ निषाद राज को बाँहों, में भर गले लगाया है ||

पत्र, पुष्प, फल जो श्रद्धा से, अर्पण करने आए हैं |

बेर भीलनी के जूठे, प्रभु, बड़े प्रेम से खाये हैं ||

कपि सुग्रीव राज को अपना, सखा बना सम्मान दिया |

ऋक्षराज श्री जामवंत को, अपना मंत्री बना लिया ||

पक्षीराज जटायू का, कर कमल परश उद्धार किया |

समता भाव जगाने हरि ने, वसुंधरा पर जन्म लिया ||

रिपु के बन्धु विभीषण को, ले शरण भरत सा प्रेम किया |

सिन्धु नीर मँगवा कर करके, तिलक लंक का राज्य दिया ||

समता भाव युक्त जो जन हैं, वही पुरुष निष्पृह रहते |

बिन अभिलाष किए मिल जाए, उसमें तृप्त हुआ करते ||

सिद्धि, असिद्धि उभय में भी जो, हर्ष न दुख अनुभव करते |

मधुकर समता रसमय हैं वे, जो हर क्षण प्रमुदित रहते ||

कुछ विभूतियाँ मिल भारत में, समरसता फैलाने को |

करने लगीं प्रयत्न मानवों, को सन्मार्ग दिखाने को ||

रामभद्राचार्य जगद्गुरु, ने ज्ञानामृत बरसाया |

क्या है समरसता जन मानस, सम्मुख विस्तृत समझाया ||

समरसता का भाव जगे तो, भेद न मन में आयेगा |

सब हों सुखी, निरोगी जग में, भाव हृदय छलकाएगा ||

सबने मिल संकल्प लिया, प्रतिवर्ष ये ज्योति जलाना है |

विश्व गुरू है भारत पुनि, जन मानस ज्ञान जगाना है ||